सफल और सुखी जीवन के सूत्र श्रीमद भागवद गीता

आज हम लोग भौतिक सुखो के द्वारा अपने जीवन को सफल एवं सुखी बनाने का प्रयास कर रहे है और तकनिकी  सुविधाओं के द्वारा अपने जीवन को जीने  का प्रयास  कर  रहे है। लेकिन तकनिकी सुविधाएं हमारे कार्य  को सुगम बना सकती है लेकिन, हमारे जीवन को सुखी नहीं बना सकते है; हमें अपने भौतिक प्रयासों को आध्यात्मिक आधार देना ही पड़ेगा ताकि हमारा जीवन सफल, सुखदायी और शांतिमय बना रहे। श्रीमद भगवत गीता में जीवन के हर पहलू की व्याख्या दी गयी है। इसके सभी अध्यायों में करीब करीब हर श्लोक में हर उस समस्या का समाधान दिया गया है जो कभी ना कभी हर इंसान के सामने आती हैं। तो आइये जानते है श्रीमद भगवत गीता में सफल जीवन जीने की कला एवं जीवन के प्रबंधन के सूत्र :
वैसे तो भगवत गीता एक विशाल ग्रंथ है, लेकिन हम उसमे से कुछ विशेष सूत्रों को समायोजित कर रहे है।
  जीवन प्रबंधन  में प्रभावशीलता और दक्षता के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। प्रभावशीलता सही चीजें कर सकती है। जबकि क्षमता सही काम कर सकती है। एक प्रभावी प्रबंधन के सामान्य सिद्धांतों को हर क्षेत्र में लागू किया जा सकता है।

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(अर्थ - कर्म करना ही तेरे अधिकार में है, फल पर कभी नहीं कर्मफल तेरा प्रेरक बने, अकर्मण्यता में तेरी रुचि हो ।)
'कर्म' के बारे में हम लोगो ने बहुत कुछ सुना है, लेकिन वास्तविक सार ऊपर दिए हुए श्लोक में निहित है। प्रत्येक व्यक्ति को परिणाम या नतीजे की उम्मीद किए बिना अपने काम यानी कर्म पर ध्यान देना चाहिए। आपको अंतिम उत्पाद पर इतना ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए और बस वहां पहुंचने की प्रक्रिया का आनंद लें। हम अपनी दृष्टि से प्रभावित होते हैं और इसकी सफलता पर भरोसा करते हैं। हम भूल जाते हैं कि पूरी प्रक्रिया का आनंद लेने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि, आप जो भी कुछ जानते हैं उसकी अपेक्षा करने के बजाय वैसे भी अनिश्चित है; याद रखें, आशाएं या आशावादी होना गलत नहीं है, लेकिन बिना कार्रवाई के, कभी भी सफलता नहीं पा सकते है।
कहने का सार यह है कि, आत्मविश्वास और भगवन में आस्था का उद्घोष करने वाला व्यक्ति ही सफल है यदि आपको अपने कर्म , अपने हाथों पर विश्वास है तो आपको उसका फल नियति (ईश्वर) के न्याय पर छोड़ देना चाहिए यानी कि फल अनुकूल हो तो अति उत्साहित नहीं होता और फल प्रतिकूल हो तो अति शोकाकुल नहीं होता है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरः अपराणि 
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि
अन्यानि संयाति नवानि देही 
(अर्थ -जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों का परित्याग करके दूसरे नवीन वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीरों का परित्याग करके दूसरे नवीन शरीरों को धारण करता है ।)
बहुमुखी प्रतिभा और अपने आप को कार्य के अनुकूल होना सफलता की कुंजी हैं, लेकिन किसी भी गृहस्ति के लिए यह जरुरी है कि , अपनी प्रारंभिक दृष्टि से अटक जाएं। नए अवसरों को अनुकूलित, नवप्रवर्तन और निवेदन करना सीखें। अशिष्ट मत बनो; अभिनव, खुले दिमागी और स्पंज जैसे अनुभवों को अवशोषित करने के लिए तैयार रहें। जितनी जल्दी आप एक बदलाव के अनुकूल होते हैं, उतना ही बेहतर होता है। याद रखें, परिवर्तन केवल स्थिर है।

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।
(अर्थ- योग रहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती। ऐसे भावना रहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा।)

हम सभी की इच्छा होती है कि, हमें सिर्फ सुख प्राप्त हो, इसके लिए हम यहाँ से वंहा भटकते रहते है, लेकिन सुख का मूल तो हमारे  अपने मन में स्थित होता है। जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में लगा रहता है, उसके मन में भावना (आत्मज्ञान) नहीं होती। और जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं होती, उसे किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिलती और जिसके मन में शांति न हो, सुख कहां से प्राप्त होगा।

बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।
(अर्थ- ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न करे किंतु स्वयं परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही कराए।)
आज प्रतिस्पर्धा का दौर है और यहां हर कोई आगे निकलना चाहता है। ऐसे में कुछ चतुर लोग अपने साथी को काम को टालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या उसके मन में नकारात्मक भाव भर देते हैं। जिससे कि चतुर व्यक्ति आगे निकल जाता है और वही शरीफ व्यक्ति पीछे रह जाता हैवही श्रेष्ठ व्यक्ति वही होता है जो अपने कार्य से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। और आगे आने वाले जीवन में उसी व्यक्ति का भविष्य सबसे ज्यादा उज्जवल भी होता है।


To be continued……………..

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