श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami)

जन्माष्टमी 2018 की तैयारी :
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का त्यौहार है, जो कि भारत एवं दुनिया भर में एक बहुत ही शुभ त्यौहार माना जाता है। भारत में ही नहीं अपितु दुनिया भर के देशो में भगवान् श्रीकृष्ण को लोग अपना भगवान् मानते है, और भगवान् द्वारा दिया गया गीता ज्ञान का अपने जीवन में अनुसरण करते है। जन्माष्टमी वह दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर जन्म लिया था। इसे हम लोग विष्णु के रूप लिया गया सबसे शक्तिशाली अवतार मानते है।
आइये जानते है की जन्माष्टमी का महत्व क्या है? लोग इसे कैसे मानते हैं? आदि। मान्यता है की, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी पर सभी भक्तों को प्रातः उठकर पुरे घर की सफाई कर स्नान आदि से नीवित होकर पूजा घर में शुद्ध गंगा जल छिड़क कर पूजा अर्चना करनी चाहिए।

संछिप्त पूजा विधि (१० मिनट) :
सर्वप्रथम निचे दिए मंत्रो से पूजा घर में गंगा जल छिड़के:
ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा. : स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं बाह्याभ्यन्तर: सूचि:
निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीन बार आचमन करें |
केशवाय नम:, नारायणाय नम:, माधवाय नम: |
फिर यह मंत्र बोलते हुए हाथ धो लें | हृषीकेशाय नम: |
फिर घर में सभी को तिलक लगाए |
चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनानम | आपदां हरते नित्यं लक्ष्मी: तिष्ठति सर्वदा ||
निम्न मंत्र से हाथ में मौली (कलावा ) बाँध लें
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: | तेन त्वां प्रतिबंध्नामि रक्षे मा चल मा चल ||
निम्न मंत्र से दीपक जला लें |
दीपो ज्योति: परं ब्रम्ह दीपो ज्योति: जनार्दन: | दीपो हरतु में पापं दीपज्योति: नमोऽस्तु ते ||
निम्न मंत्र से गणेशजी सरस्वतीजी का पूजन एवं स्मरण करें  :
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ | निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ||
फिर  हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश मेंवं वरुणाय नम:’ कहते हुए वरुण देवता का तथा निम्न श्लोक पढ़ते हुए तीर्थों का आवाहन करें
गंगे यमुने चैव गोदावरी सरस्वति | नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु ||
अक्षतपुष्प कलश के सामने चढ़ा दें |
कलश को तिलक करें | पुष्प, दूर्वा चढायें | धुप दीप दिखायें | प्रसाद चढायें |

फिर दिन भर उपवास रखना चाहिए और मध्यरात्रि को दोबारा स्नान कर पवित्र हो कर पूजा घर में, पूर्व दिशा की ओर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर, उस पर राधा-कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित करें, इसके बाद ऊपर दिए गए मंत्रो से दुबारा पूजन करे. दूध, दही, शहद, पंचमेवा, गंगाजल से अभिषेक करे।  फिर भगवान् की आरती करे, विधि पूर्वक भोग लगाए और फिर स्वयं भी भोजन करे.
सबसे बड़ी बात है कि, आप अपने ज्ञान के हिसाब से पूजा और प्रार्थना कर सकते हैं, इस व्रत के लिए कोई कठोर और तेज़ नियम नहीं हैं। आप अपने घर में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को आमंत्रित कर सकते हैं और उनके साथ एक साथ पूजा कर सकते हैं। आप अपने घर में एक साथ मिलकर  और शुद्ध भक्ति के साथ एक साथ किर्तन या भजन गा सकते हैं। अपने घरो को फूलों, मालाओं, रोशनी, इत्यादि के साथ घर को सजा सकते है भगवान श्रीकृष्ण का स्वागत करने के लिए घर को सुंदर और शुद्ध बनाएं।

भजन:
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।
पितु मात स्वामी सखा हमारे-2 हे नाथ नारायण वासुदेव-2।।
पितु मात स्वामी सखा हमारे . हे नाथ नारायण वासुदेव
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।
राधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे राधे कृष्णा कृष्णा -3
राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली |
भ्रमर सी अलक |
कस्तूरी तिलक |
चंद्र सी झलक |
ललित छवि श्यामा प्यारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग |
मधुर मिरदंग |
ग्वालिन संग |
अतुल रति गोप कुमारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस |
जटा के बीच |
हरै अघ कीच |
चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद |
चांदनी चंद |
कटत भव फंद |
टेर सुन दीन भिखारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

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