मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व नवरात्र आश्विन शुक्लपक्ष को कलश की स्थापना के साथ ही भक्तों की आस्था का प्रमुख त्यौहार शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है। माँ आदीशक्ति (दुर्गा) के नौ रुपों की चर्चा की गई है और नवरात्र में इनकी पूजा के विशेष फल बताए गए हैं।
नौ देवियों की पूजा :
नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है।
जो भी साधक नवरात्रि में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ दुर्गा सप्तशती के श्लोकों द्वारा माँ-दुर्गा देवी की पूजा नियमित शुद्वता व पवित्रता करता है तो निश्चित रूप से माँ प्रसन्न हो शुभ फल प्रदान करती हैं।
पूजा के समय पूजा घर को विभिन्न प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजाना चाहिए, स्वस्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना विधिवत रूप से स्थापित करने के पश्चात समस्त देवी-देवताओं का आवाह्न उनके 'नाम मंत्रों' द्वारा उच्चारण कर षोडषोपचार पूजा करनी चाहिए जो विशेष फलदायी है। माँ की ज्योति जो कि साक्षात् शक्ति का प्रतिरूप है उसे अखण्ड ज्योति के रूप में शुद्ध देसी घी हो तो सर्वोत्तम है अन्यथा तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करना चाहिए। इस अखण्ड ज्योति को मण्डल के अग्निकोण में स्थापित करना चाहिए। ज्योति से ही आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलते हैं। अखण्ड ज्योति का विशेष महत्व है जो जीवन के हर रास्ते को प्रकाशमय बना देती है।
नवरात्रि में नो दिनों के व्रत का विधान भी है जिसमें पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों तक का व्रत रखा जा सकता है। इस पर्व में सभी स्वस्थ्य व्यक्तियों को अपनी समर्थ के अनुसार व्रत रखना चाहिए। व्रत में शुद्ध शाकाहारी व शुद्ध व्यंजनों का ही प्रयोग करना चाहिए। व्रत में फलाहार अति उत्तम तथा श्रेष्ठ माना गया है।
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