सोलह
(१६) सोमवार के व्रत की पूजा विधि एवं कथा :
श्रावण
के सोलह सोमवार के व्रत बहुत
ही लोकप्रिय एवं फलदायी है। वैसे
तो इन व्रत को
हर उम्र का व्यक्ति कर
सकता है लेकिन, यह
व्रत विशेष
रूप से अविवाहित
महिलाओ के लिए वरदान सिद्ध होता है और जातक को मन चाहा वर मिलता है। अन्य उम्र के व्यक्ति भी
इस व्रत को करने से
मनचाहा फल पा सकते
है लेकिन, श्रावण के सोलह सोमवार के व्रत के विशेष नियम
है और इन नियमो
का पालन करना व्रत को सुभकारी बनाता
है।
सोलह (१६) सोमवार के व्रत की पूजा विधि :
प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर
पूजा स्थान पर भगवन शिव
की मूर्ति को स्थापित कर स्नान कराये
फिर तिलक लगाए और धुप दीप,
नैवेद्य, पूंगीफ़ल, चंदन, अक्षत, पुष्प से विधिवत पूजा
अर्चना करे। मंदिर में शिवलिंग का दूध और
जल से अभषेक करे। शिवलिंग
पर बेलपत्र, धतूरा, भांग, जनेउ का जोड़ा, चंदन,
अक्षत, पुष्प, आदि चढ़ाये और भगवान
शिव की पूजा अर्चना
करें। पूजा
करने के बाद कथा
और आरती करें।
हाथ
में पुष्प और अक्षत लेकर
शांत मन से निम्न
मन्त्र से शिवजी की
पूजा करे :
कर्पूरगौरं
करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं |
सदा
वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥
व्रत के दौरान महामृत्युंजय
मंत्र का जाप करें।
यह मंत्र हमेशा अनिष्ट से बचाता है
:
ॐ
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव
बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
दिन
में बार-बार "ओम नमः शिवाय"
का जाप करते रहें।
सोलह सोमवार व्रत कथा
एक बार श्री
महादेव जी पार्वती जी के साथ भ्रमण करते हुए पृथ्वी के अमरावती नगरी में आये,
वहां के राजा
ने एक शिवजी का मंदिर बनवाया था। शंकर जी वहीं ठहर गये। एक दिन पार्वती जी
और शिवजी
चौसर खेल रहे थे उसी समय पुजारी पूजा करने को आये। पार्वती जी ने पूछा- पुजारी
जी! बताइये
जीत किसकी होगी? वह बाले शंकर जी की और कुछ समय पश्चात ही पार्वती जी सच
में हार गयी।
पार्वती जी ने सोचा पुजारी की भविष्यवाणी के कारण ही वे हार गयी अतः उन्होंने
पुजारी जी
को कोढ़ी होने का शाप दिया, पुजारी जी कोढ़ी हो गये।
पुजारी बहुत
दुखी हो गया और सोचने लगा की माता को कैसे प्रसन्न करें। कुछ समय पश्चात
अप्सराएं
पूजन के लिए आई और पुजारी से कोढी होने का कारण पूछा- पुजारी जी ने सब बातें
बतला दीं।
अप्सराएं बोली- पुजारी जी! तुम सोलह सोमवार का व्रत करो। महादेव जी तुम्हारा कष्ट
दूर करेंगे।
पुजारी जी ने उत्सुकता से व्रत की विधि पूछी। अप्सरा बोली- सोमवार को व्रत करें,
संध्योपासनोपरान्त
आधा सेर गेहूं के आटे का चूरमा तथा मिट्टी की तीन मूर्ति बनावें और घी, गुड, दीप, नैवेद्य,
बेलपत्रादि से पूजन करें। बाद में चूरमा भगवान शंकर को अर्पण कर, प्रसादी समझ
वितरित कर
प्रसाद लें। इस विधि से सोलह सोमवार कर सत्रहवें सोमवार को पांच सेर गेहूं के आटे
की बाटी का
चूरमा बनाकर भोग लगाकर बांट दें फिर सकुटुम्ब प्रसाद ग्रहण करें। ऐसा करने से
शिवजी तुम्हारे
मनोरथ पूर्ण करेंगे। यह कहकर अप्सरा स्वर्ग को चली गई।
पुजारी जी
यथाविधि व्रत कर रोग मुक्त हुए और पूजन करने लगे। कुछ दिन बाद शिव पार्वती पुनः
आये पुजारी
जी को कुशल पूर्वक देख पार्वती ने रोग मुक्त होने का कारण पूछा। पुजारी के
कथनानुसार
पार्वती ने व्रत किया, फलस्वरूप अप्रसन्न कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए।
कार्तिकेय
जी ने भी पार्वती से पूछा कि क्या कारण है कि मेरा मन आपके चरणों में लगा? पार्वती
ने
वही व्रत
बतलाया। कार्तिकेय जी ने भी व्रत किया, फलस्वरूप बिछुड़ा हुआ मित्र मिला। उसने भी
कारण पूछा।
बताने पर विवाह की इच्छा से यथाविधि व्रत किया। फलतः वह विदेश गया, वहां
राजा की कन्या
का स्वयंवर था। राजा का प्रण था कि हथिनी जिसको माला पहनायेगी उसी के
साथ पुत्री
का विवाह होगा। यह ब्राह्मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से एक ओर जा बैठा। हथिनी
ने माला इसी
ब्राह्मण कुमार को पहनाई। धूमधाम से विवाह हुआ तत्पश्चात दोनों सुख से रहने
लगे। एक दिन
राजकन्या ने पूछा- नाथ! आपने कौन सा पुण्य किया जिससे राजकुमारों को छोड
हथिनी ने
आपका वरण किया। ब्राह्मण ने सोलह सोमवार का व्रत सविधि बताया। राज-कन्या ने
सत्पुत्र
प्राप्ति के लिए व्रत किया और सर्वगुण सम्पन्न पुत्र प्राप्त किया। बड़े होने पर पुत्र
ने पूछा-
माता जी!
किस पुण्य से मेरी प्राप्ति आपको हुई? राजकन्या ने सविधि सोलह सोमवार व्रत
बतलाया। पुत्र
राज्य की कामना से व्रत करने लगा। उसी समय राजा के दूतों ने आकर उसे राज्य-
कन्या के
लिए वरण किया। आनन्द से विवाह सम्पन्न हुआ और राजा के दिवंगत होने पर ब्राह्मण
कुमार को
गद्दी मिली। फिर वह इस व्रत को करता रहा। एक दिन इसने अपनी पत्नी से पूजन
सामग्री शिवालय
में ले चलने को कहा, परन्तु उसने दासियों द्वारा भिजवा दी। जब राजा ने पूजन
समाप्त किया
जो आकाशवाणी हुई कि इस पत्नी को निकाल दे, नहीं तो वह तेरा सत्यानाश कर
देगी। प्रभु
की आज्ञा मान उसने रानी को निकाल दिया।
रानी भाग्य
को कोसती हुई नगर में बुढ़िया के पास गई। दीन देखकर बुढि या ने इसके सिर पर सूत
की पोटली
रख बाजार भेजा, रास्ते में आंधी आई, पोटली उड गई। बुढि या ने फटकार कर भगा
दिया। वहां
से तेली के यहां पहुंची तो सब बर्तन चटक गये, उसने भी निकाल दिया। पानी पीने नदी
पर पहुंची
तो नदी सूख गई। सरोवर पहुंची तो हाथ का स्पर्श होते ही जल में कीड़े पड गये, उसी जल
को पी कर
आराम करने के लिए जिस पेड के नीचे जाती वह सूख जाता। वन और सरोवर की यह
दशा देखकर
ग्वाल इसे मन्दिर के गुसाई के पास ले गये। यह देखकर गुसाईं जी समझ गये यह
कुलीन अबला
आपत्ति की मारी हुई है। धैर्य बंधाते हुए बोले- बेटी! तू मेरे यहां रह, किसी बात की
चिन्ता मत
कर। रानी आश्रम में रहने लगी, परन्तु जिस वस्तु पर इसका हाथ लगे उसी में कीड़े पड
जायें। दुःखी
हो गुसाईं जी ने पूछा- बेटी! किस देव के अपराध से तेरी यह दशा हुई? रानी ने बताया
–
मैंने पति
आज्ञा का उल्लंघन किया और महादेव जी के पूजन को नहीं गई। गुसाईं जी ने शिवजी से
प्रार्थना
की। गुसाईं जी बोले- बेटी! तुम सोलह सोमवार का व्रत करो। रानी ने सविधि व्रत पूर्ण
किया। व्रत
के प्रभाव से राजा को रानी की याद आई और दूतों को उसकी खोज करने भेजा। आश्रम
में रानी
को देखकर दूतों ने आकर राजा को रानी का पता बताया, राजा ने जाकर गुसाईं जी से कहा-
महाराज! यह
मेरी पत्नी है शिव जी के रुष्ट होने से मैंने इसका परित्याग किया था। अब शिवजी
की कृपा से
इसे लेने आया हूं। कृपया इसे जाने की आज्ञा दें। गुसाईं जी ने आज्ञा दे दी। राजा रानी
नगर में आये।
नगर वासियों ने नगर सजाया, बाजा बजने लगे। मंगलोच्चार हुआ। शिवजी की
कृपा से प्रतिवर्ष
सोलह सोमवार व्रत को कर रानी के साथ आनन्द से रहने लगा। अंत में शिवलोक
को प्राप्त
हुए। इसी प्रकार जो मनुष्य भक्ति सहित और विधिपूर्वक सोलह सोमवार व्रत को करता
है और कथा
सुनता है उसकी सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में शिवलोक को प्राप्त होता
है।
शिवजी की आरती (Shri Shiv Ji Ki
Aarti in Hindi)
जय शिव ओंकारा
हर ॐ शिव ओंकारा |
ब्रम्हा विष्णु
सदाशिव अद्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
एकानन चतुरानन
पंचांनन राजे |
हंसासंन
,गरुड़ासन ,वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
दो भुज चारु
चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रुप
निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
अक्षमाला
,बनमाला ,रुण्ड़मालाधारी |
चंदन , मृदमग
सोहें, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
श्वेताम्बर,पीताम्बर,
बाघाम्बर अंगें
सनकादिक,
ब्रम्हादिक ,भूतादिक संगें
ॐ जय शिव
ओंकारा......
कर के मध्य
कमड़ंल चक्र ,त्रिशूल धरता |
जगकर्ता,
जगभर्ता, जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
ब्रम्हा विष्णु
सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर
मध्यें ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
काशी में
विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी |
नित उठी भोग
लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव
ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी
की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद
स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
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