जाने हिन्दू धर्म के सोलह 16 संस्कार व उनका महत्व:
हमारे हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर निर्भर है, जिनका निर्माण मनुष्य को पवित्र व मर्यादित बनाने के लिये ऋषि मुनियों द्वारा किया गया है। हमारे जीवन में संस्कारों का धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है, जो भारतीय संस्कृति की महत्ता व महानता को दर्शाते हैं।
सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि लगभग सभी धर्मों में प्रत्येक शुभ कार्य का आरम्भ संस्कार से ही होता है।
हमारे ग्रंथो के अनुसार, हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार लगभग चालीस संस्कारों की मान्यता है, लेकिन अब सोलह संस्कारों को महत्वपूर्ण माना जाता है:
गर्भाधान: गर्भाधान संस्कार को, वैदिक काल से ही महत्वपूर्ण माना जाताहै, जो उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए अनिवार्य है।
पुंसवन: पुंसवन संस्कार द्वारा स्वस्थ तथा उत्तम संतान की कामना की जाती है, जिसे तिथि एवं ग्रहों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
सीमन्तोन्नयन: सीमन्तोन्नयन अर्थात सौभाग्य प्राप्त करना। सीमन्तोन्नयन संस्कार द्वारा गर्भपात रोकने के साथ साथ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा की कामना की जाती है।
जातकर्म: इस संसार में जन्म लेने वाले शिशु को बुद्धि, बल तथा दीर्घायु हेतु स्वर्ण खण्ड से मधु (शहद) एवं घृत (घी) चटाया जाता है।
नामकरण: सनातन (हिन्दू) धर्म में अधिक महत्व रखने वाला संस्कार ‘नामकरण’ संस्कार है, जिसे जन्म के ग्यारहवें दिन करना उचित समझा जाता है।
निष्क्रमण: निष्क्रमण संस्कार में शिशु को सूर्य व चन्द्रमा की रोशनी से अवगत कराने का विधान है, ताकि शिशु सूर्य के समान तेजस व चंद्रमा के समान के विनम्र बन सके।
अन्नप्राशन: अन्नप्राशन का शाब्दिक अर्थ अन्न ग्रहण करना या कराना है। अन्नप्राशन संस्कार द्वारा शिशु अन्न (प्राण) ग्रहण करा शारीरिक व मानसिक रूप से बलवान व बुद्धिमान बनने की परिकल्पना की जाती है।
चूडाकर्म: चूड़ाकर्म यानी मुंडन संस्कार, जिसके द्वारा बौद्धिक विकास की परिकल्पना की जाती है।
कर्णवेध: कर्णवेध संस्कार द्वारा शिशु की शारीरिक व्याधि से रक्षा करता है।
यज्ञोपवीत: यज्ञोपवीतं यानी जनेऊ संस्कार सबसे पवित्र संस्कार होता है, जिससे आयु, बल और तेज बढ़ाने की परिकल्पना की जाती है।
वेदारम्भ: वेदारम्भ संस्कार द्वारा बालक को, वेदज्ञान (शास्त्र शिक्षा) से परिचित कराया जाता है। प्राचीन काल में वेदारम्भ संस्कार मनुष्य के जीवन में अहम भूमिका निभाता था।
केशान्त: वेद ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात गुरुकुल से विदाई लेने पर आचार्य की उपस्थिती में केशान्त संस्कार सम्पन्न किया जाता है।
समावर्तन: समावर्तन संस्कार, गुरुकुल से विदाई लेने से पहले स्नान द्वारा होता है।
विवाह: विवाह संस्कार द्वारा समाज को संगठित तथा नियमबद्ध बनाने का प्रयास किया गया, जिसके फलस्वरूप भारतीय समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।
अन्त्येष्टि: हिन्दू संस्कारों में अन्त्येष्टि अंतिम संस्कार है, जिसे अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार मृत शरीर की विधि से क्रियाक्रम करने से आत्मा शान्त हो जाती हैं।
हमारे हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर निर्भर है, जिनका निर्माण मनुष्य को पवित्र व मर्यादित बनाने के लिये ऋषि मुनियों द्वारा किया गया है। हमारे जीवन में संस्कारों का धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है, जो भारतीय संस्कृति की महत्ता व महानता को दर्शाते हैं।
सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि लगभग सभी धर्मों में प्रत्येक शुभ कार्य का आरम्भ संस्कार से ही होता है।
हमारे ग्रंथो के अनुसार, हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार लगभग चालीस संस्कारों की मान्यता है, लेकिन अब सोलह संस्कारों को महत्वपूर्ण माना जाता है:
- गर्भाधान
- पुंसवन
- सीमन्तोन्नयन
- जातकर्म
- नामकरण
- निष्क्रमण
- अन्नप्राशन
- चूडाकर्म
- विद्यारंभ
- कर्णवेध
- यज्ञोपवीत
- वेदारम्भ
- केशान्त
- समावर्तन
- विवाह
- अन्त्येष्टि
गर्भाधान: गर्भाधान संस्कार को, वैदिक काल से ही महत्वपूर्ण माना जाताहै, जो उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए अनिवार्य है।
पुंसवन: पुंसवन संस्कार द्वारा स्वस्थ तथा उत्तम संतान की कामना की जाती है, जिसे तिथि एवं ग्रहों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
सीमन्तोन्नयन: सीमन्तोन्नयन अर्थात सौभाग्य प्राप्त करना। सीमन्तोन्नयन संस्कार द्वारा गर्भपात रोकने के साथ साथ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा की कामना की जाती है।
जातकर्म: इस संसार में जन्म लेने वाले शिशु को बुद्धि, बल तथा दीर्घायु हेतु स्वर्ण खण्ड से मधु (शहद) एवं घृत (घी) चटाया जाता है।
नामकरण: सनातन (हिन्दू) धर्म में अधिक महत्व रखने वाला संस्कार ‘नामकरण’ संस्कार है, जिसे जन्म के ग्यारहवें दिन करना उचित समझा जाता है।
निष्क्रमण: निष्क्रमण संस्कार में शिशु को सूर्य व चन्द्रमा की रोशनी से अवगत कराने का विधान है, ताकि शिशु सूर्य के समान तेजस व चंद्रमा के समान के विनम्र बन सके।
अन्नप्राशन: अन्नप्राशन का शाब्दिक अर्थ अन्न ग्रहण करना या कराना है। अन्नप्राशन संस्कार द्वारा शिशु अन्न (प्राण) ग्रहण करा शारीरिक व मानसिक रूप से बलवान व बुद्धिमान बनने की परिकल्पना की जाती है।
चूडाकर्म: चूड़ाकर्म यानी मुंडन संस्कार, जिसके द्वारा बौद्धिक विकास की परिकल्पना की जाती है।
कर्णवेध: कर्णवेध संस्कार द्वारा शिशु की शारीरिक व्याधि से रक्षा करता है।
यज्ञोपवीत: यज्ञोपवीतं यानी जनेऊ संस्कार सबसे पवित्र संस्कार होता है, जिससे आयु, बल और तेज बढ़ाने की परिकल्पना की जाती है।
वेदारम्भ: वेदारम्भ संस्कार द्वारा बालक को, वेदज्ञान (शास्त्र शिक्षा) से परिचित कराया जाता है। प्राचीन काल में वेदारम्भ संस्कार मनुष्य के जीवन में अहम भूमिका निभाता था।
केशान्त: वेद ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात गुरुकुल से विदाई लेने पर आचार्य की उपस्थिती में केशान्त संस्कार सम्पन्न किया जाता है।
समावर्तन: समावर्तन संस्कार, गुरुकुल से विदाई लेने से पहले स्नान द्वारा होता है।
विवाह: विवाह संस्कार द्वारा समाज को संगठित तथा नियमबद्ध बनाने का प्रयास किया गया, जिसके फलस्वरूप भारतीय समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।
अन्त्येष्टि: हिन्दू संस्कारों में अन्त्येष्टि अंतिम संस्कार है, जिसे अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार मृत शरीर की विधि से क्रियाक्रम करने से आत्मा शान्त हो जाती हैं।
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